Friday, December 11, 2009

ये रिश्ते

रिश्ते

क्या सिर्फ़
संबोधन का नाम है?

या
सिर्फ़ नजदीकियों को
रिश्ता कहते हैं?

अथवा
साथ गुजारे गये पलों को?
जो नींव की पक्की इंटो की तरह
रिश्तों को मजबूत बनाते होंगे?

पर
नहीं शायद
आजकल नींव की ईंटे भी कच्ची हैं।

26 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

किसी टेबल पर रखा है मेरा अकेलापन
मैं एक कोने में वह दूसरे कोने में

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया रचना है बधाई।

अनिल कान्त said...

बड़े गंभीर से प्रश्न किए हैं आपने
अच्छा लिखती हैं आप

Arshia Ali said...

रिश्तों की गहराई को बहुत ही सजह ढंग से बयां कर दिया आपने।
------------------
शानदार रही लखनऊ की ब्लॉगर्स मीट
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।

ताऊ रामपुरिया said...

पर
नहीं शायद
आजकल नींव की ईंटे भी कच्ची हैं।


ये भी शायद संभावित जवाब हो सकता है. शुभकामनाएं.

रामराम.

Ashish (Ashu) said...

बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए....
मन को छू गये आपके भाव।
इससे ज्यादा और क्या कहूं।
बहुत कुछ चन्‍द शब्‍दों में व्‍यक्‍त किया, आभार ।

योगेन्द्र मौदगिल said...

Behtreen bhavabhivyakti.....

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा रचना.

Arvind Mishra said...

रिश्तों के बंध तो अलौकिक होते हैं और बने तो शाश्वत होते हैं -देह भले ही नश्वर हो रिश्ते नहीं !

laxmikant joshi said...

hi i wish you to more rachnaya likhay

सुनीता शानू said...

खूबसूरत रचना के साथ-साथ मनविंदर जी की खूबसूरत टिप्पणी भी पढ़ने को मिली...बहुत अच्छा!

naresh singh said...

सुन्दर मनोभाव सरल भाषा में है बहुत अच्छा लगा |

Udan Tashtari said...

कुछ नया क्यूँ नहीं लिख रही हो??

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

saari inte kacchi nahin...sacchi... haan magar is bahane kavita to acchhi hai..sacchhi....!!

दिनेश शर्मा said...

सुन्दर ।

Prateek said...

इतना दर्द! चेहरा देख के तो पता ही नहीं चलता है!
Anyways, beautiful poem. जय बजरंग बलि!

संजय @ मो सम कौन... said...

पंजाबी में एक कहावत है, नहीं थी - ’चोर ते लाठी दो जने, मैं ते बापू क्ल्ले’। कहावत पुरानी है, तब शायद नींव में पक्की ईंटे ही थीं, अब भी पक्की ईंटें हैं लेकिन नगण्य। बहुत अच्छी कविता।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर शब्द-चित्र हैं!

कडुवासच said...

पर
नहीं शायद
आजकल नींव की ईंटे भी कच्ची हैं।
......... बहुत सुन्दर!!!!

Manjit Thakur said...

बांसुरी की ज़िंदगी से सीख ले ऐ ज़िंदगी, लाख सीने में जलन हो मुस्कुराना चाहिए। अच्छी कविता बधाई

Anonymous said...

Sorry Lass, I would comment in English and contrary to mass praising, I would say, before quoting the Eents as halfbaked, were the cement enough strong?.
Sounded like some early twenty crisis.
Chalte Chalte--
'' Ta Umar Ek Hi Galti Karte Rahe,
Dhul thi Chehre per Aaina Saaf Karte Rahe''.

दिलीप कवठेकर said...

शायद रिश्तों की नींव का इससे अच्छा बयां और कहीं नहीं..

Rohit Singh said...

रिशता .... वाकई लगता है कि दोबारा परिभाषा की जरुरत है..

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

डेढ़ साल में बस दो पोस्ट !

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

अरे वाह, रिश्तों की कमजोरी को आपने बहुत खूब समझा है।
--------
बूझ सको तो बूझो- कौन है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

कृपया ब्लॉग अपडेट करती रहें।