Friday, December 11, 2009

ये रिश्ते

रिश्ते

क्या सिर्फ़
संबोधन का नाम है?

या
सिर्फ़ नजदीकियों को
रिश्ता कहते हैं?

अथवा
साथ गुजारे गये पलों को?
जो नींव की पक्की इंटो की तरह
रिश्तों को मजबूत बनाते होंगे?

पर
नहीं शायद
आजकल नींव की ईंटे भी कच्ची हैं।

Friday, December 4, 2009

यादें और बातें

यादें अंजानी
बातें, कही अनकही
यूं ही पड़ी रह जाती हैं ।

जैसे ओस की बूंदें
उतरी हों सुबह की रेशमी घास पर ।

झुर्झुरी सी होती है
जब भी कदमों के नीचे आती हैं।

या फिर बीती उम्र के सफ़ों पर
रोशनाई के कुछ कतरे ।

खामोश पडे पन्नों पर,
धूल कभी नहीं चढती ।

यादें और बातें,
दोनों बस वैसी ही तो रह जाती हैं ।